जन्म: 11 अक्टूबर 1902, सिताबदियारा, सारण, बिहार
निधन: 8 अक्टूबर, 1979, पटना, बिहार
कार्य: स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, राजनेता
जे.पी. अथवा ‘लोक नायक’ के नाम से मशहूर जयप्रकाश नारायण एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक और राजनेता थे। उन्हें मुख्यतः 1970 में इंदिरा गांधी के विरुद्ध विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है। भारत सरकार ने उन्हें सन 1998 में मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजा। सन 1965 में उन्हें समाज सेवा के लिए ‘मैगसेसे’ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। वर्ष 1957 में उन्होंने राजनीति छोड़ने का निर्णय लिया पर 1960 के दशक के अंत में वे राजनीति में पुनः सक्रिय रहे। जे.पी. इंदिरा गांधी की प्रशासनिक नीतियों के विरुद्ध थे और गिरते स्वास्थ्य के बावजूद उन्होंने 1977 में विपक्ष को एकजुट कर इंदिरा गांधी को चुनाव में हरा दिया।
प्रारंभिक जीवन
जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार के सारण जिले के सिताबदियारा गाँव में हुआ। उनके पिता का नाम हर्सुल दयाल श्रीवास्तव और माता का नाम फूल रानी देवी था। वो अपनी माता-पिता की चौथी संतान थे। जब जयप्रकाश 9 साल के थे तब वो अपना गाँव छोड़कर कॉलेजिएट स्कूल में दाखिला लेने के लिए पटना चले गए। स्कूल में उन्हें सरस्वती, प्रभा और प्रताप जैसी पत्रिकाओं को पढने का मौका मिला। उन्होंने भारत-भारती, मैथिलीशरण गुप्त और भारतेंदु हरिश्चंद्र के कविताओं को भी पढ़ा। इसके अलावा उन्हें ‘भगवत गीता’ पढने का भी अवसर मिला।
1920 में जब जयप्रकाश 18 वर्ष के थे तब उनका विवाह प्रभावती देवी से हुआ। विवाह के उपरान्त जयप्रकाश अपनी पढाई में व्यस्त थे इसलिए प्रभावती को अपने साथ नहीं रख सकते थे इसलिए प्रभावती विवाह के उपरांत कस्तूरबा गांधी के साथ गांधी आश्रम मे रहीं। मौलाना अबुल कलाम आजाद के भाषण से प्रभावित होकर उन्होंने पटना कॉलेज छोड़कर ‘बिहार विद्यापीठ’ में दाखिला ले लिया। बिहार विद्यापीठ में पढाई के पश्चात सन 1922 में जयप्रकाश आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चले गए। अमेरिका जाकर उन्होंने जनवरी 1923 में बर्कले विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। अमेरिका में अपनी पढाई का खर्चा उठाने के लिए उन्होंने खेतों, कंपनियों, रेस्टोरेन्टों इत्यादि में कार्य किया। इसी दौरान उन्हें श्रमिक वर्ग के परेशानियों का ज्ञान हुआ और वे मार्क्स के समाजवाद से प्रभावित हुए। इसके पश्चात उन्होने एम.ए. की डिग्री हासिल की पर पी.एच.डी पूरी न कर सके क्योंकि माताजी की तबियत ठीक न होने के कारण उन्हें भारत वापस लौटना पड़ा।
भारत वापसी और स्वाधीनता आन्दोलन
जयप्रकाश नारायण जब 1929 में अमेरिका से लौटे तब स्वतंत्रता संग्राम तेज़ी पर था। धीरे-धीरे उनका संपर्क जवाहर लाल नेहरु और महात्मा गाधी से हुआ और वो स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बने। 1932 मे सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान जब गांधी, नेहरु समेत अन्य महत्वपूर्ण कांग्रेसी जेल चले गए तब उन्होने भारत के अलग-अलग हिस्सों मे आन्दोलन को दिशा दी। ब्रिटिश सरकार ने अन्ततः उन्हें भी मद्रास में सितंबर 1932 मे गिरफ्तार कर लिया गया और नासिक जेल भेज दिया। नासिक जेल में उनकी मुलाकात अच्युत पटवर्धन, एम. आर. मासानी, अशोक मेहता, एम. एच. दांतवाला, और सी. के. नारायणस्वामी जैसे नेताओं से हुई। इन नेताओं के विचारों ने कांग्रेस सोसलिस्ट पार्टी (सी.एस.पी) की नींव रखी। जब कांग्रेस ने 1934 मे चुनाव मे हिस्सा लेने का फैसला किया तब कांग्रेस सोसलिस्ट पार्टी ने इसका विरोध किया।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया और ऐसे अभियान चलाये जिससे सरकार को मिलने वाला राजस्व रोका जा सके। इस दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 9 महीने की कैद की सज़ा सुनाई गई। उन्होने गांधी और सुभाष चंद्र बोस के बीच मतभेदों को सुलझाने का प्रयास भी किया। सन 1942 में ‘भारत छोडो’ आंदोलन के दौरान वे हजारीबाग जेल से फरार हो गए थे।
आजादी के बाद और आपातकाल
आजादी के बाद कई सरकारों ने घोटाले और षड़यंत्र किए जिनसे देश और समाज का बहुत नुकसान हुआ। देश में महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी व्याप्त थी ऐसे समय में जय प्रकाश नारायण ने आगे आकर युवाओं के माध्यम से जनता को एकत्रित किया। उन्होंने कहा ये सारी समस्याएं तभी दूर हो सकती हैं, ‘जब सम्पूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए और सम्पूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रान्ति-’सम्पूर्ण क्रान्ति’ आवश्यक है।” उनके अहिंसावादी आंदोलन की सूरत को देखकर कुछ लोगों ने उन्हें आजाद भारत के गांधी की उपाधि दी थी।
जे.पी. आन्दोलन बिहार से शुरू होकर पूरे भारत में कब फैल गया पता ही नहीं चला।
जे.पी. एक जमाने में कांग्रेस के सहयोगी थे लेकिन आजादी के लगभग दो दशक बाद आई इंदिरा गांधी सरकार के भ्रष्ट व अलोकतांत्रिक तरीकों ने उन्हें कांग्रेस और इंदिरा के विरोध में खड़ा कर दिया। इसी बीच सन 1975 में अदालत में इंदिरा गांधी पर चुनावों में भ्रष्टाचार का आरोप साबित हो गया और जयप्रकाश ने विपक्ष को एकजुट कर उनके इस्तीफे की मांग की। इसके परिणामस्वरूप प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय आपातकाल लागू कर दिया और जे.पी. समेत हजारों विपक्षी नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया।
जनवरी 1977 को इंदिरा गाँधी सरकार ने आपातकाल हटाने का फैसला किया। मार्च 1977 में चुनाव हुए और लोकनायक के “संपूर्ण क्रांति आदोलन” के चलते भारत में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी।
निधन
आन्दोलन के दौरान ही उनका स्वास्थ्य बिगड़ना शुरू हो गया था। आपातकाल में जेल में बंद रहने के दौरान उनकी तबियत अचानक 24 अक्टूबर 1976 को ख़राब हो गयी और 12 नवम्बर 1976 को उन्हें रिहा कर दिया गया। मुंबई के जसलोक अस्पताल में जांच के बाद पता चला की उनकी किडनी ख़राब हो गयी थी जिसके बाद वो डायलिसिस पर ही रहे।
जयप्रकाश नारायण का निधन 8 अक्टूबर, 1979 को पटना में मधुमेह और ह्रदय रोग के कारण हो गया।