जन्म : 17 सितम्बर, 1930 चेन्नई
निधन: 22 अप्रैल 2013, चेन्नई
कार्यक्षेत्र : कर्नाटक शैली के वायलिन वादक, गायक और संगीतकार
लालगुडी जयरामन अय्यर एक प्रसिद्ध कर्नाटक शैली के वायलिन वादक, गायक और संगीतकार थे. अपने समृद्ध कल्पना, तीव्र अभिग्रहण क्षमता और कर्नाटक संगीत में अग्रणी संगीतज्ञों की व्यक्तिगत शैली को उनके साथ समारोह में जा कर आसानी से अपना लेने की अपनी क्षमता के चलते ये बहुत जल्द अग्रणी पंक्ति के संगीतज्ञ बन गए. संगीत समारोहों से मिले समृद्ध अनुभव के अलावा अपनी कड़ी मेहनत, लगन और अपने अन्दर उत्पन्न हो रहे संगीत के विचारों को मौलिक अभिव्यक्ति देने की दृढ़ इच्छा के बल पर ये दुर्लभ प्रतिभा के एकल वायलिन वादक के रूप में उभर कर आये.
इन्होंने समग्र रूप से वायलिन वादन की एक नई तकनीक को स्थापित किया, जिसे भारतीय शास्त्रीय संगीत की सर्वश्रेष्ठ अनुकूलता के लिए बनाया गया था, और एक अद्वितीय शैली को स्थापित किया, जिसे ‘लालगुडी बानी’ के रूप में जाना जाता है. इनकी सिद्ध और आकर्षक शैली, सुंदर और मौलिक थी जो कि पारंपरिक शैली से अलग नहीं थीं. इसके कारण इनके प्रशंसकों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती ही गई. इस बहुआयामी व्यक्तित्व सौंदर्य के कारण इन्हें कई कृतियों जैसे ‘तिलानस’, ‘वरनम’ और नृत्य रचना के निर्माण का श्रेय भी दिया गया, जिसमें राग, भाव, ताल और गीतात्मक सौन्दर्य का अद्भुत मिश्रण है. इन्होंने वायलिन में सबसे अधिक मांग वाली शैली को पेश किया और रचनाओं की गीतात्मक सामग्री का प्रस्तुतिकरण किया.
ये ऐसे पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने कर्नाटक शैली के वायलिन वादन को अंतर्राष्टीय ख्याति दिलवाई. साथ ही इन्होंने वर्ष 1996 में वायलिन, वेणु (बांसुरी) और वीणा के साथ को जोड़ने की एक नई अवधारणा की शुरूआत की और कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम (कंसर्ट) भी किए.
प्रारंभिक एवं पारिवारिक जीवन
श्री लालगुडी जयरामन अय्यर का जन्म 17 सितम्बर, 1930 को चेन्नई (तमिलनाडु) के महान संत संगीतकार त्यागराज के वंश में हुआ था. इन्होंने बहुमुखी प्रतिभा के धनी अपने दिवंगत पिता गोपाल अय्यर वी.आर. से कर्नाटक संगीत की शिक्षा प्राप्त की. उनके पिता ने बड़ी कुशलता से इन्हें स्वयं प्रशिक्षित किया था. मात्र 12 वर्ष की उम्र में ही इन्होंने एक वायलिन वादक के रूप में अपने संगीत कैरियर की शुरूआत की.
लालगुडी जयरामन का विवाह श्रीमती राजलक्ष्मी से हुआ. इनके दो बच्चें हैं- इनके बेटे का नाम जी.जे.आर. कृष्णन है और इनकी बेटी का नाम लालगुडी विजयलक्ष्मी है. इनका बेटा और बेटी दोनों अपने महान पिता के नक्शे कदम पर आज भी चल रहे हैं और अपनी प्रस्तुतियों के लिए जाने जाते हैं. आजकल की प्रसिद्ध वीणा वादक जयंती कुमारेश, लालगुडी की भतीजी हैं.
समकालीन अन्य संगीत विशेषज्ञों के साथ सम्बन्ध
गायकों के साथ संगत करने के लिए लालगुडी जयरामन की काफी मांग रहती थी और अरियाकुडी रामानुजा अयंगर, चेम्बई वैदीनाथ भागावतार, सेमांदगुड़ी श्रीनिवास अय्यर, जी.एन. बालासुब्रमण्यम, मदुरै मणि अय्यर, के.वी. नारायणस्वामी, महाराजापुरम संथानम, डी.के. जयरामन, एम. बालामुरलीकृष्णा, टी.वी. संकरानारायणनन, टी.एन. शेषागोपालन और बांसुरी संगीतज्ञ जैसे एन. रमानी जैसे महान विशेषज्ञों और गायकों के साथ इन्होने काम किया.
देश-विदेश में संगीत कार्यक्रम
इन्होंने बड़े पैमाने पर भारत के साथ-साथ विदेशों में भी अपने संगीत की प्रस्तुतियां दी. भारत सरकार ने इन्हें भारतीय सांस्कृतिक प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य के रूप में रूस भेजा था. वर्ष 1965 में एडिनबर्ग त्योहार पर प्रसिद्ध वायलिनवादक येहुदी मेनुहिन इनके तकनीक से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने इन्हें अपना इतालवी वायलिन भेंट किया था. साथ ही इन्होंने सिंगापुर, मलेशिया, मनीला और पूर्वी यूरोपीय देशों में अपना प्रदर्शन किया. वर्ष 1979 के दौरान इनकी नई दिल्ली आकाशवाणी में हुए रिकॉर्डिंग को अंतर्राष्ट्रीय संगीत परिषद्, बगदाद, एशियाई पैसिफिक रोस्ट्रम और इराक प्रसारण एजेंसी में इनके प्रस्तुत रिकॉर्डिंग को विभिन्न देशों से प्राप्त 77 प्रविष्टियों में सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया. इन्होने बेल्जियम और फ्रांस के संगीत समारोह में भी अपना कार्यक्रम प्रस्तुत किया.
भारत सरकार ने अमेरिका एवं लंदन में ‘फेस्टिवल ऑफ इंडिया’ में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए इन्हें चुना और इन्होंने लंदन में ‘एकल’ और ‘जुगलबंदी’ कंसर्ट पेश किया और साथ ही जर्मनी और इटली में भी प्रस्तुति दी, जिसकी काफी प्रशंसा की गई थी. वर्ष 1984 में श्री लालगुडी ने ओमान, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और कतर का दौरा किया, जो अत्यधिक सफल रहा. इन्होंने ओपेरा बैले ‘जय जय देवी’ के गीत और संगीत की रचना की, जिसका प्रीमियर वर्ष 1994 में क्लीवलैंड (अमेरिका) में किया गया और संयुक्त राज्य के कई शहरों में इसे प्रदर्शित किया गया था. अक्टूबर, 1999 में लालगुडी ने श्रुथी लया संघम (इंस्टिट्यूट ऑफ फाइन आर्ट्स) के तत्वावधान में ब्रिटेन में अपने कला का प्रदर्शन किया था. यहां संगीत कार्यक्रम के बाद लालगुड़ी द्वारा रचित एक नृत्य नाटिका ‘पंचेस्वरम’ का मंचन भी किया गया था.
इनकी रचनाएं
‘थिलानस’ और ‘वरनम’ के लिए सबसे प्रसिद्ध श्री लालगुडी जयरामन को आधुनिक समय में सबसे सफल शाश्त्रीय संगीतकारों में से एक माना जाता है. इनकी रचनाएं चार भाषाओं (तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और संस्कृत) में हैं. वे राग के सभी क्षेत्रों में संगीत रचना करते थे. इनकी शैली की विशेषता है इनकी रचनाओं का माधुर्य, ध्यानपूर्वक सूक्ष्म तालबद्ध का परिष्कृत आलिंगन. इनकी रचनाएं भरतनाट्यम नृत्यांगनाओं के बीच बहुत लोकप्रिय हैं.
पुरस्कार एवं सम्मान
इन्हें वर्ष 1963 में म्यूजिक लवर्स एसोसिएशन ऑफ लालगुडी द्वारा ‘नाद विद्या तिलक’ से सम्मानित किया गया.
भारती सोसायटी (न्यूयॉर्क) द्वारा इन्हें वर्ष 1971 में ‘विद्या संगीत कलारत्न’ से भी सम्मानित किया गया.
फेडेरेशन ऑफ म्यूजिक सभा (मद्रास) द्वारा ‘संगीत चूड़ामणि’ से इन्हें वर्ष 1971 में सम्मानित किया गया.
वर्ष 1972 में इन्हें भारत सरकार द्वारा अपने नागरिक सम्मान ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया.
इन्हें ईस्ट वेस्ट एक्सचेंज (न्यूयॉर्क) द्वारा ‘नाद विद्या रत्नाकर’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
वर्ष 1979 में इन्हें तमिलनाडु सरकार और संगीत नाटक अकादमी द्वारा ‘स्टेट विद्वान’ के पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
वर्ष 1994 में इन्हें मैरीलैंड (अमेरिका) की मानद नागरिकता भी प्रदान की गयी.
वर्ष 2001 में इन्हें भारत सरकार द्वारा अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया.
इन्होंने वर्ष 2006 में फिल्म ‘श्रीनगरम’ में बेस्ट म्यूजिक डायरेक्शन के लिए ‘नेशनल फिल्म अवार्ड’ भी प्राप्त किया.
कर्नाटक के मुख्यमंत्री द्वारा इन्हें ‘फर्स्ट चौदइया मेमोरिएल-लेवल पुरस्कार’ भी दिया गया.
वर्ष 2010 में इन्हें संगीत नाटक अकादमी का सदस्य भी बनाया गया.