जन्म: 1941, धूरी, पंजाब
मृत्यु: 29 दिसम्बर, 2009, दिल्ली
कार्यक्षेत्र: चित्रकारी
पुरस्कार: राष्ट्रीय कालिदास सम्मान, राष्ट्रीय पुरस्कार, ललित कला अकादमी, नई दिल्ली
मनजीत बावा एक जाने-माने भारतीय चित्रकार थे। उनका जन्म सन 1941 में पंजाब के धूरी में हुआ था। बचपन में उन्हें महाभारत और रामायण के पौराणिक कथाओं, वारिस शाह के काव्य और गुरु ग्रन्थ साहिब सुनाये गए थे जिससे बाद में उन्हें अपनी कला की प्रेरणा मिली। उन्हें प्राकृत से भी बहुत लगाव था जिससे लाका में उनकी रूचि बढ़ने लगी। बचपन में ही कला के प्रति उनका रुझान देखकर उनके बड़े भाईयों ने उन्हें चित्रकारी के प्रति प्रोत्साहित किया। सन 1958-63 के मध्य उन्होंने दिल्ली के कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स में ललित कला की शिक्षा ग्रहण की। यहाँ उन्होंने सोमनाथ होरे, राकेश मेहरा, धनराज भगत और बी.सी. सान्याल जैसे शिक्षकों के अंतर्गत शिक्षा ग्रहण की। बावा के अनुसार अबनी सेन के अंतर्गत उन्होंने जो ज्ञान अर्जित किया उसी से उन्हें असली पहचान मिली। अबनी उन्हें हर रोज़ लगभग 50 स्केचेज बनाने को कहते और उनमें से लगभग सभी को अस्वीकार कर देते थे जिससे बावा के अन्दर लगातार काम करने की आदत पड़ी। अबनी ने उन्हें ऐसे समय पर रूपकात्मक कला की ओर ध्यान देने को कहा जब सभी कलाकार ऐब्सट्रैक्ट की ओर जा रहे थे।
करियर
सन 1964 और 1971 के मध्य मंजीत बावा ने ब्रिटेन में बतौर एक सिल्कस्क्रीन पेंटर कार्य किया। उन्होंने सिल्कस्क्रीन पेंटिग की कला भी वहीँ ब्रिटेन में सीखी थी। जब वे भारत लौटे तब उनके सामने सबसे बड़ी दुविधा थी कि वो क्या पेंट करेंगे – ज्यादातर कलाकारों की तरह यूरोपिय पद्धती की पेंटिंग या कुछ और! मंथन के बाद उनको अपनी चित्रकारी का प्रेरणास्रोत मिल गया – भारतीय पौराणिक कथाएँ और सूफी काव्य। वे महाभारत, रामायण और पुराणों की गाथाएं, वारिस शाह का काव्य और गुरु ग्रन्थ साहिब सुनकर बड़े हुए थे तो इनसे प्रेरणा मिलना स्वाभाविक ही था।
उनके चित्रों की विशिष्टता है उनके रंग – सूरजमुखी का गेरू, धान के खेतों की हरियाली, सूरज का लाल और आसमान का नीला। वे उन चित्रकारों में से एक थे जिन्होंने स्लेटी और भूरे रंगों से हटकर गुलाबी, लाल और बैंगनी जैसे परंपरागत भारतीय रंगों का अपने चित्रों में प्रयोग किया।
उन्होंने राँझा और बांसुरी धारण किये हुए कृष्ण (गाय के स्थान पर कुत्तों से घिरे हुए) के चित्र बनाये। काली और शिव भी उनके चित्रकारी में विशिष्ट स्थान रखते थे।
अपने चित्रकारी में बावा ने प्रकृति से भी प्रेरणा ली। उन्होंने देश के कई स्थानों का भ्रमण किया था और जहाँ भी जाते अक्सर वहां के चित्र बनाने लगते। वे उन कलाकारों में से थे, जिन्होंने भारत के तमाम इलाकों में घूमकर लोगों औऱ उनके रंगों की आत्मा को जाना और समझा था। वे हिमाचल प्रदेश, गुजरात और राजस्थान खूब घूमे। आम लोगों का सरल जीवन उन्हें बहुत आकर्षित करता था। लोगों की सरलता-सहजता उनका दिल छूती थी और चटख रंग उन्हें खूब लुभाते थे।
उनकी चित्रकारी में पक्षियों और जीव-जंतुओं को भी प्रमुखता से देखा जा सकता है। प्रकृति के अलाव बांसुरी भी उनके चित्रों में प्रमुखता से दखी जा सकती है। इस प्रकार हीर-राँझा, कृष्ण, गोवर्धन, देवी-देवताओं तथा कई मिथकीय और पौराणिक प्रसंग-संदर्भ के साथ-साथ उनके चित्रों में जितने जीव-जंतु भी प्रमुखता से दिखाई देते हैं। उनकी कला में जितने जीव-जंतु हैं उतने शायद किसी अन्य भारतीय कलाकार में नहीं।
एक चित्रकार के साथ-साथ वे एक कुशल बांसुरी वादक भी थे। बांसुरी बजन उन्होंने पन्ना लाल घोष से सीखा था।
इस कलाकार ने यूरोपीय कला के असर से मुक्त होकर अपने लिए एक कठिन राह खोजी, बनाई, उस पर दृढ़ता से चलकर दिखाया और प्रसिद्ध भी हुए। दुनियाभर के कला प्रेमी उनकी पेंटिंग्स के कद्रदान हैं। मंजीत बावा की एक पेंटिंग तो क़रीब एक करोड़ 73 लाख रुपये में बिकी थी।
व्यक्तिगत जीवन
मंजीत बावा का विवाह शारदा बावा से हुआ था और वे भारत की राजधानी दिल्ली में रहते थे। बावा दंपत्ति को एक पुत्र (रवि) और एक पुत्री (भावना) है। उनकी मृत्यु 29 दिसम्बर 2009 में दिल्ली में हो गई। अपनी मृत्यु से पहले दिल का दौरा पड़ने के कारण वे तीन साल तक कोमा में थे।
पुरस्कार और सम्मान
- सन 2005-06 में मंजीत को प्रतिष्ठित कालिदास सम्मान दिया गया
- बुद्धदेब दासगुप्ता द्वारा उनके जीवन पर बनाये गए वृत्तचित्र ‘मीटिंग मंजीत’ को सन 2002 में ‘नेशनल अवार्ड फॉर बेस्ट डाक्यूमेंट्री’ का पुरस्कार दिया गया
- सन 1963 में उन्हें सैलोज़ पुरस्कार दिया गया
- सन 1980 में उन्हें ललित कला अकादमी द्वारा राष्ट्रिय पुरस्कार दिया गया
टाइम लाइन (जीवन घटनाक्रम)
1941: मंजीत बावा का जन्म पंजाब के धूरी में हुआ
1958: दिल्ली पॉलिटेक्निक के स्कूल ऑफ़ आर्ट्स में अध्ययन प्रारंभ किया
1963: कला की पढ़ाई पूरी हुई
1964: सिल्क स्क्रीन प्रिंटिंग सीखने के लिए ब्रिटेन गए
1967: एसेक्स के लन्दन स्कूल ऑफ़ प्रिंटिंग से सिल्क स्क्रीन पेंटिंग में डिप्लोमा ग्रहण करने के बाद एक सिल्क स्क्रीन प्रिंटर के तौर पर कार्य करने लगे
2005: दिल का दौरान पड़ने के बाद कोमा में चले गए
2008: 67 साल की उम्र में मृत्यु हो गयी