जन्म: 3 दिसम्बर, 1882, तारापुर, मुंगेर ज़िला, बिहार
मृत्यु: 16 अप्रैल, 1966, कोलकाता, पश्चिम बंगाल
कार्यक्षेत्र: चित्रकारी
प्रसिद्ध चित्र: ‘डांडी मार्च’, ‘संथाली कन्या’, ‘सती का देह त्याग’ इत्यादि
नंदलाल बोस एक प्रसिद्ध भारतीय चित्रकार थे। इन्हें आधुनिक भारतीय कला के आरंभिक कलाकारों में से एक माना जाता है। ये अवनीन्द्रनाथ टैगोर के प्रख्यात शिष्य थे और इन्हें चित्रकारी की ‘भारतीय शैली’ के लिए जाना जाता है। सन 1922 में उन्हें शान्तिनिकेतन स्थित ‘कला भवन’ का प्रमुख चुना गया। उनके कला पर टैगोर परिवार और अजंता के भित्ति चित्रों का बहुत प्रभाव था। उनके उत्कृष्ट कला में शामिल हैं ग्रामीण जीवन, महिलाओं और पौराणिक कथाओं से सम्बंधित चित्र। कई कला समीक्षक उनके चित्रों को ‘भारत के सबसे महत्वपूर्ण आधुनिक चित्र’ मानते हैं। सन 1976 में भारतीय पुरातत्व संग्रह और भारत सरकार के संस्कृति विभाग ने उनके काम के ‘कलात्मक और सौन्दर्यात्मक महत्व’ को देखते हुए उन्हें ‘बहुमूल्य कला निधि’ घोषित किया।
भारतीय संविधान की मूल प्रति का डिजाइन भी नंदलाल बोस ने ही बनाया था। ‘डांडी मार्च’, ‘संथाली कन्या’, ‘सती का देह त्याग’ इत्यादि इनके प्रसिद्ध चित्रों में शामिल हैं। चित्रकारी और कला अध्यापन के अतिरिक्त इन्होंने तीन पुस्तकें भी लिखीं—रूपावली, शिल्पकला और शिल्प चर्चा।
प्रारंभिक जीवन
नंदलाल बोस का जन्म 3 दिसम्बर 1882 में बिहार के मुंगेर जिले के तारापुर में एक मध्यम-वर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता पूर्णचंद्र बोस उस समय महाराजा दरभंगा की रियासत के मैनेजर थे। उनकी माता क्षेत्रमोनी देवी एक गृहणी थीं और बालक नंदलाल के खिलौनों को अलग-अलग रूप देती रहती थीं। इस प्रकार प्रारंभ से ही नंदलाल बोस को मूर्तियाँ बनाने और बाद में पूजा पंडाल सजाने में रूचि उत्पन्न हो गयी थी।
सन 1898 में उन्हें सेंट्रल कॉलेजिएट स्कूल में हाई स्कूल की पढ़ाई करने के लिए कोलकाता भेज दिया गया। सन 1902 में उन्होंने परीक्षा पास कर लिया और उसी संस्थान में कॉलेज की भी पढ़ाई करते रहे। जून 1903 में नन्दलाल बोस ने सुधीरादेवी से विवाह कर लिया, जो एक पारिवारिक मित्र की बेटी थीं।
नंदलाल कला की पढ़ाई करना चाहते थे पर उनके परिवारवालों ने इसकी अनुमति नहीं दी। अपनी कक्षा में बार-बार अनुत्तीर्ण होने के कारण एवे एक विद्यालय को छोड़ दूसरे में गए और फिर सन 1905 में वाणिज्य की पढ़ाई के लिए कोलकता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। बार-बार असफल होने के बाद उन्होंने अपने परिवार को उन्हें कोलकाता के स्कूल ऑफ़ आर्ट्स में पढ़ने के लिए मना लिया।
इस प्रकार 5 वर्ष तक उन्होंने चित्रकला की विधिवत शिक्षा ली। उन्होंने 1905 से 1910 के बीच कलकत्ता गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ़ आर्ट में अबनीन्द्ननाथ टैगोर से कला की शिक्षा ग्रहण की।
करियर
एक युवा कलाकार के तौर पर नंदलाल बोस अजंता के भित्ति चित्रों से बहुत प्रभावित हुए थे। वे कलाकारों और लेखकों के उस अंतर्राष्ट्रीय समूह का हिस्सा बन गए जो ‘पारंपरिक भारतीय संस्कृति’ को पुनर्जिवित करना चाहते थे। इस समूह में शामिल थे ओकाकुरा ककुजो, विलियम रोथेन्स्तीं, योकोयामा तैकान, क्रिषतीअना हेर्रिन्ग्हम, लौरेंस बिन्यों, अबनिन्द्रनाथ टैगोर, एरिक गिल और जैकब एपस्टीन।
उनकी प्रतिभा और मौलिक शैली को गगनेन्द्रनाथ टैगोर, आनंद कुमारस्वामी और ओ.सी. गांगुली जैसे प्रख्यात कलाकारों और कला समीक्षकों ने माना।
सन 1922 में उन्हें शान्तिनिकेतन स्थित ‘कला भवन’ का प्रधानाध्यापक नियुक्त किया गया। वे इस पद पर सन 1951 तक रहे।
उन्होंने भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू के आमंत्रण पर भारतीय संविधान की मूल प्रति को अपनी चित्रकारी से सजाया। बोस ने भारतीय संविधान की मूल प्रति को कुल 22 चित्रों से सजाया। इन सभी चित्रों को बनाने में कुल चार साल का वक़्त लगा।
नंदलाल बोस ने राष्ट्रिय पुरस्कारों जैसे भारत रत्न और पद्म श्री के प्रतीक भी बनाये।
नयी दिल्ली स्थित ‘नेशनल गैलरी ऑफ़ मॉडर्न आर्ट’ में उनकी 7000 कृतियां संग्रहित हैं जिसमें सन 1930 में दांडी यात्रा के दौरान बनाया गया महात्मा गाँधी का लिनोकट और वे सात पोस्टर भी शामिल हैं जिन्हें उन्होंने महात्मा गाँधी के निवेदन पर कांग्रेस के सन 1938 के हरिपुरा अधिवेशन के लिए बनाया था।
नन्दलाल बोस ने अपनी चित्रकारी के माध्यम से तत्कालीन आंदोलनों के विभिन्न स्वरूपों, सीमाओं और शैलियों को उकेरा। उनकी चित्रकारी में एक मनमोहक जादू था जो सभी कला प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता था। उनकी चित्रकारी को एशिया के साथ-साथ पश्चिम में भी काफ़ी तवज्जो मिला है।
भारत के स्वाधीनता आंदोलन का भी उनकी कला पर बहुत प्रभाव दिखाई पड़ा। उन्होंने कांग्रेस के कई अधिवेशनों के लिए पोस्टर और चित्र बनाए और गांधीजी का एक लाइफ साइज रेखाचित्र भी बनाया, जो बहुत प्रसिद्ध हुआ। स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान पारंपारिक और राष्ट्रीय अवधारणाओं के मेल से जो आधुनिक अवधारणाएँ संकल्पित हुई थीं, उनका प्रभाव तत्कालीन कलाकारों की कला में साफ़ दिखाई दिया और नन्दलाल बोस भी इससे अछूते नहीं रहे। कई अवसरों पर गांधीजी के परिकल्पना को नन्दलाल बोस ने अपने चित्रकारी के माध्यम से साकार किया।
उनके प्रमुख विद्यार्थी
नन्दलाल बोस के कुछ प्रमुख शिष्य इस प्रकार हैं – बिनोद बिहारी मुख़र्जी, रामकिंकर बैज, बोहार राममनोहर सिन्हा, के.जी. सुब्रमन्यन, ए. रामचंद्रन, हेनरी धर्मसेना, प्रतिमा ठाकुर, सोवों सोम, जहर दासगुप्ता, साबित ठाकुर, मेनाजा स्वगनेश, यश बोम्बुट और कोंडापल्ली शेषागिरी राव।
पुरस्कार और सम्मान
- सन 1956 में उन्हें ललित कला अकादमी का फेल्लो चुना गया। ललित कला अकादमी का फेल्लो चुने जाने वाले वे दूसरे कलाकार थे
- सन 1954 में उन्हें पद्म भूषण से नवाज़ा गया
- सन 1957 में कलकत्ता विश्वविद्यालय ने उन्हें ‘डी.लिट.’ की उपाधि से सम्मानित किया
- विश्वभारती विश्वविद्यालय ने उन्हें देशीकोट्टम्मा की उपाधि दी
- कलकत्ता के ‘अकादेमी ऑफ़ फाइन आर्ट्स’ ने उन्हें ‘सिल्वर जुबली मैडल’ से सम्मानित किया
- सन 1965 में एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल ने उन्हें ‘टैगोर जन्म शदी पदक’ दिया
टाइम लाइन (जीवन घटनाक्रम)
1882: मुंगेर जिले के खड़गपुर में जन्म हुआ
1898: कोलकाता के सेंट्रल कॉलेजिएट स्कूल में दाखिला लिया
1903: सुधीर देवी से विवाह संपन्न हुआ
1905: वाणिज्य की शिक्षा के लिए प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया
1906: अबनिन्द्रनाथ टैगोर से मिले
1907: इंडियन सोसाइटी ऑफ़ ओरिएण्टल आर्ट प्रदर्शनी में उन्हें उनकी पेंटिंग ‘सती’ के लिए 500 रूपये का पुरस्कार दिया गया
1907-08: उनकी पुत्री गौरी का जन्म हुआ
1922: शान्तिनिकेतन स्थित कलाभवन के प्रधानाध्यापक नियुक्त हुए
1924: रविन्द्र नाथ टैगोर के साथ चीन, जापान, मलेशिया और बर्मा की यात्रा की
1954: भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया
1956: ललित कला अकादमी का फेलो चुने गए
1965: टैगोर जन्म शदी पदक दिया गया
1966: 84 साल की उम्र में निधन हो गया