जन्म: 17 सितम्बर, 1879, ईरोड, तमिल नाडु
मृत्यु: 24 दिसम्बर, 1973, वेल्लोर. तमिल नाडु
कार्य क्षेत्र: तमिल राष्ट्रवादी, समाज सुधारक
ई.वी. रामास्वामी एक तमिल राष्ट्रवादी, राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता थे। इनके प्रशंसक इन्हें आदर के साथ ‘पेरियार’ संबोधित करते थे। इन्होने ‘आत्म सम्मान आन्दोलन’ या ‘द्रविड़ आन्दोलन’ प्रारंभ किया था। उन्होंने जस्टिस पार्टी का गठन किया जो बाद में जाकर ‘द्रविड़ कड़गम’ हो गई। वे आजीवन रुढ़िवादी हिन्दुत्व का विरोध करते रहे और हिन्दी के अनिवार्य शिक्षण का भी उन्होने घोर विरोध किया। उन्होंने दक्षिण भारतीय समाज के शोषित वर्ग के लिए आजीवन कार्य किया। उन्होंने ब्राह्मणवाद और ब्राह्मणों पर करारा प्रहार किया और एक पृथक राष्ट्र ‘द्रविड़ नाडु’ की मांग की। पेरियार ई.वी. रामास्वामी ने तर्कवाद, आत्म सम्मान और महिला अधिकार जैसे मुद्दों पर जोर दिया और जाति प्रथा का घोर विरोध किया। उन्होंने दक्षिण भारतीय गैर-तमिल लोगों के हक़ की लड़ाई लड़ी और उत्तर भारतियों के प्रभुत्व का भी विरोध किया। उनके कार्यों से ही तमिल समाज में बहुत परिवर्तन आया और जातिगत भेद-भाव भी बहुत हद तक कम हुआ। यूनेस्को ने अपने उद्धरण में उन्हें ‘नए युग का पैगम्बर, दक्षिण पूर्व एशिया का सुकरात, समाज सुधार आन्दोलन के पिता, अज्ञानता, अंधविश्वास और बेकार के रीति-रिवाज़ का दुश्मन’ कहा।
प्रारंभिक जीवन
इरोड वेंकट नायकर रामासामी का जन्म 17 सितम्बर 1879 को मिलनाडु के इरोड में एक सम्पन्न और परम्परावादी हिन्दू परिवार में हुआ था। उनके पिता वेंकतप्पा नायडू एक धनि व्यापारी थे। उनकी माता का नाम चिन्ना थायाम्मल था। उनका एक बड़ा भाई और दो बहने थीं।
सन 1885 में उन्होंने स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में शिक्षा के लिए दाखिला लिया पर कुछ सालों की औपचारिक शिक्षा के बाद वे अपने पिता के व्यवसाय से जुड़ गए। बचपन से ही वे रूढ़िवादिता, अंधविश्वासों और धार्मिक उपदशों में कही गयी बातों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाते रहते थे। उन्होंने हिन्दू महाकाव्यों और पुराणों में कही गई परस्पर विरोधी बातों को बेतुका कहा और माखौल भी उड़ाया। उन्होंने सामाजिक कुप्रथाएं जैसे बाल विवाह, देवदासी प्रथा, विधवा पुनर्विवाह का विरोध और स्त्रियों और दलितों के शोषण का खुलकर विरोध किया। उन्होने जाति व्यवस्था का भी विरोध और बहिष्कार किया।
काशी यात्रा
सन 1904 में पेरियार ने काशी की यात्रा की जिसने उनके जीवन को परिवर्तित कर दिया। भूख लगने पर वे वहां निःशुल्क भोज में गए पर जाने के बाद उन्हें पता चला कि यह सिर्फ ब्राह्मणों के लिए था। उन्होंने फिर भी भोजन प्राप्त करने की कोशिस की पर उन्हें धक्का मरकर अपमानित कर दिया गया जिसके कारण वे रुढ़िवादी हिन्दुत्व के विरोधी हो गए। इसके बाद उन्होंने किसी भी धर्म को नहीं स्वीकारा और आजीवन नास्तिक रहे।
कांग्रेस पार्टी में
उन्होंने इरोड के नगर निगम के अध्यक्ष के तौर पर कार्य किया और सामाजिक उत्थान के कार्यों को बढ़ावा दिया। उन्होंने खादी के उपयोग को बढ़ाने की दिशा में भी कार्य किया। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के पहल पर सन 1919 में वे कांग्रेस के सदस्य बन गए। उन्होंने असहयोग आन्दोलन में भाग लिया और गिरफ्तार भी हुए। सन 1922 के तिरुपुर सत्र में वे मद्रास प्रेसीडेंसी कांग्रेस समिति के अध्यक्ष बन गए और सरकारी नौकरियों और शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण की वकालत की। सन 1925 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ दिया।
वैकोम सत्याग्रह
केरल के वैकोम में अस्पृश्यता के कड़े नियम थे जिसके अनुसार किसी भी मंदिर के आस-पास वाली सडक पर दलित/हरिजन वर्जित थे। केरल के कांग्रेस नेताओं के निवेदन पर पेरियार ने वैकोम आन्दोलन का नेतृत्व किया। यह आन्दोलन मन्दिरों की ओर जाने वाली सड़कों पर दलितों के चलने की मनाही को हटाने के लिए किया गया था। इस आन्दोलन में उनकी पत्नी और मित्रों ने भी उनका साथ दिया।
आत्म सम्मान आन्दोलन
पेरियार और उनके समर्थकों ने समाज से असमानता कम करने के लिए अधिकारियों और सरकार पर सदैव दबाव डाला। ‘आत्म सम्मान आन्दोलन’ का मुख्य लक्ष्य था गैर-ब्राह्मण द्रविड़ों को उनके सुनहरे अतीत पर अभिमान कराना। सन 1925 के बाद पेरियार ने ‘आत्म सम्मान आन्दोलन’ के प्रचार-प्रसार पर पूरा ध्यान केन्द्रित किया। आन्दोलन के प्रचार के एक तमिल साप्ताहिकी ‘कुडी अरासु’ (1925 में प्रारंभ) और अंग्रेजी जर्नल ‘रिवोल्ट’ (1928 में प्रारंभ) का प्रकाशन शुरू किया गया। इस आन्दोलन का लक्ष्य महज ‘सामाजिक सुधार’ नहीं बल्कि ‘सामाजिक आन्दोलन’ भी था।
हिंदी भाषा का विरोध
सन 1937 में जब सी. राजगोपालाचारी मद्रास प्रेसीडेंसी के मुख्यमंत्री बने तब उन्होंने स्कूलों में हिंदी भाषा की पढ़ाई को अनिवार्य कर दिया, जिससे हिंदी विरोधी आन्दोलन उग्र हो गया। तमिल राष्ट्रवादी नेताओं, जस्टिस पार्टी और पेरियार ने हिंदी-विरोधी आंदोलनों का आयोजन किया जिसके फलस्वरूप सन 1938 में कई लोग गिरफ्तार किये गए। उसी साल पेरियार ने हिंदी के विरोध में ‘तमिल नाडु तमिलों के लिए’ का नारा दिया। उनका मानना था कि हिंदी लागू होने के बाद तमिल संस्कृति नष्ट हो जाएगी और तमिल समुदाय उत्तर भारतीयों के अधीन हो जायेगा।
अपनी राजनैतिक विचारधाराओं को छोड़ सभी दक्षिण भारतीय दलों के नेताओं ने मिलकर हिंदी का विरोध किया।
जस्टिस पार्टी और द्रविड़ कड़गम
सन 1916 में एक राजनैतिक संस्था ‘साउथ इंडियन लिबरेशन एसोसिएशन’ की स्थापना हुई थी। इसका मुख्य उद्देश्य था ब्राह्मण समुदाय के आर्थिक और राजनैतिक शक्ति का विरोध और गैर-ब्राह्मणों का सामाजिक उत्थान। यह संस्था बाद में ‘जस्टिस पार्टी’ बन गयी। जनसमूह का समर्थन हासिल करने के लिए गैर-ब्राह्मण राजनेताओं ने गैर-ब्राह्मण जातिओं में समानता की विचारधारा को प्रसारित-प्रचारित किया।
सन 1937 के हिंदी-विरोध आन्दोलन में पेरियार ने ‘जस्टिस पार्टी’ की मदद ली थी। जब जस्टिस पार्टी कमजोर पद गयी तब पेरियार ने इसका नेतृत्व संभाला और हिंदी विरोधी आन्दोलन के जरिये इसे सशक्त किया।
सन 1944 में पेरियार ने जस्टिस पार्टी का नाम बदलकर ‘द्रविड़ कड़गम’ कर दिया। द्रविड़ कड़गम का प्रभाव शहरी लोगों और विद्यार्थियों पर था। ग्रामीण क्षेत्र भी इसके सन्देश से अछूते नहीं रहे। हिंदी-विरोध और ब्राह्मण रीति-रिवाज़ और कर्म-कांड के विरोध पर सवार होकर द्रविड़ कड़गम ने तेज़ी से पाँव जमाये। द्रविड़ कड़गम ने दलितों में अश्पृश्यता के उन्मूलन के लिए संघर्ष किया और अपना ध्यान महिला-मुक्ति, महिला शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह जैसे महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों पर केन्द्रित किया।
टाइम लाइन (जीवन घटनाक्रम)
- 1879: 17 सितम्बर को ई.वी. रामास्वामी का जन्म हुआ
- 1898: 19 वर्ष की आयु में नागाम्मै से विवाह किया
- 1904: पेरियार ने काशी की यात्रा की और नास्तिक बन गए
- 1919: भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस में शामिल हुए
- 1922: मद्रास प्रेसीडेंसी कांग्रेस समिति के अध्यक्ष चुने गए
- 1925: कांग्रेस में अपने पद से इस्तीफा दे दिया
- 1924: पेरियार ने वैकोम सत्याग्रह का आयोजन किया
- 1925: ‘सेल्फ रेस्पेक्ट’ आन्दोलन प्रारंभ किया
- 1929: यूरोप, रूस और मलेशिया समेत कई देशों की यात्रा की
- 1929: अपना उपनाम ‘नायकर’ का परित्याग कर दिया
- 1933: उनकी पत्नी नागाम्मै का देहांत हो गया
- 1938: उन्होंने ‘तमिल नाडु तमिलों के लिए’ का नारा दिया
- 1939: जस्टिस पार्टी के अध्यक्ष बने
- 1944: जस्टिस पार्टी का नाम बदलकर ‘द्रविड़ कड़गम’ कर दिया
- 1948: रामास्वामी ने अपने से 40 साल छोटी लड़की से दूसरा विवाह किया
- 1949: पेरियार और अन्नादुराई के मध्य मतभेदों के कारण द्रविड़ कड़गम में विभाजन हो गया
- 1973: 24 दिसम्बर को उनका निधन हो गया