जन्म: 4 दिसम्बर 1910
निधन: 27 जनवरी 2009
कार्य: भारत के पूर्व राष्ट्रपति
रामास्वामी वेंकटरमण एक भारतीय विधिवेत्ता, स्वाधीनता कर्मी, राजनेता और देश के नवें राष्ट्रपति थे। राष्ट्रपति बनने से पूर्व वे करीब चार साल तक भारत के उपराष्ट्रपति भी रहे। क़ानून की पढ़ाई के बाद उन्होंने मद्रास उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में वकालत की और युवावस्था में भारत के स्वाधीनता आन्दोलन से भी जुड़े। उन्होंने ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन में हिस्सा लिया था और संविधान सभा के सदस्य भी चुने गए। वे चार बार लोक सभा के लिए चुने गए और केन्द्र सरकार में वित्त और रक्षा मंत्री रहे। उन्होंने केंद्रसरकार में राज्य मंत्री के तौर पर भी कार्य किया। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी वे संयुक्त राष्ट्र संघ समेत कई महत्वपूर्ण संस्थाओं के सदस्य और अध्यक्ष रहे।
प्रारंभिक जीवन
रामास्वामी वेंकटरमण का जन्म तमिल नाडु में तन्जोर जिले के पट्टूकोटाई के समीप राजमदम नामक गाँव में 4 दिसम्बर 1910 को हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मद्रास में हुई और मद्रास के लोयोला कॉलेज से उन्होंने अर्थशाष्त्र विषय में स्नातकोत्तर किया। इसके बाद उन्होंने लॉ कॉलेज मद्रास से क़ानून की डिग्री हासिल की। आरम्भ में उन्होंने मद्रास उच्च न्यायालय में वकालत की और फिर सन 1951 में उच्चतम न्यायालय में अपना नाम दर्ज कराकर कार्य प्रारंभ किया।
वकालत के दौरान वे स्वाधीनता आन्दोलन से जुड़े। उन्होंने भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस द्वारा अंग्रेजी हुकुमत के विरोध में संचालित सबसे बड़े आंदोलनों में एक ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन में भाग लिया और सन 1942 में जेल गए। इस दौरान भी कानून के प्रति उनकी रूचि बनी रही और जब सन 1946 में सत्ता का हस्तानान्तरण लगभग तय हो चुका था तब उन्हें वकीलों के उस दल में शामिल किया गया जिनको मलय और सिंगापोर जाकर उन भारतीय नागरिकों को अदालत में बचाने का कार्य सौंपा गया था जिनपर जापान का साथ देने का आरोप लगा था।
सन 1947 से सन 1950 तक वे मद्रास प्रोविंशियल बार फेडरेशन का सचिव रहे।
राजनैतिक जीवन
वकालत के कार्य से जुड़े होने के कारण आर. वेंकटरमण का संपर्क राजनीति के क्षेत्र से भी बढ़ता गया। उन्हें उस संविधान सभा का सदस्य चुना गया जिसने भारत के संविधान की रचना की। सन 1950 में उन्हें स्वतंत्र भारत के स्थायी संसद (1950-52) के लिए चुना गया। इसके बाद उन्हें देश की प्रथम संसद (1952-1957) के लिए भी चुना गया। इस दौरान वे न्यूज़ीलैण्ड में आयोजित राष्ट्रमंडल संसदीय सम्मलेन में भारतीय संसदीय प्रतिनिधि मंडल के सदस्य रहे। सन 1953-54 में वे कांग्रेस संसदीय दल के सचिव भी रहे।
सन 1957 में संसद के लिए चुने जाने के बावजूद उन्होंने मद्रास राज्य में मंत्री पद के लिए त्यागपत्र दे दिया। मद्रास राज्य में उन्होंने 1957 से लेकर 1967 तक विभिन्न मंत्रालयों में कार्य किया। इस दौरान वे राज्य के ऊपरी सदन ‘मद्रास विधान परिषद्’ के नेता भी रहे।
वेंकटरमण को सन 1967 में योजना आयोग का सदस्य बनाया गया। उन्हें उद्योग, श्रम, उर्जा, यातायात, परिवहन और रेलवे की जिम्मेदारी सौंपी गयी। वे सन 1971 तक इस पद पर बने रहे। सन 1977 में वे एक बार फिर मद्रास (दक्षिण) से लोक सभा के लिए चुने गए और लोक लेखा समिति के अध्यक्ष बनाये गए।
वे संघीय कैबिनेट के ‘पोलिटिकल अफेयर्स कमेटी’ और ‘इकनोमिक अफेयर्स कमेटी’ के सदस्य भी रहे। इसके साथ-साथ उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, अंतर्राष्ट्रीय पुननिर्माण और विकास बैंक और एशियन डेवलपमेंट बैंक के गवर्नर का कार्यभार भी संभाला।
वेंकटरमण सन 1953, 1955, 1956, 1958, 1959, 1960 और 1961 में संयुक्त राष्ट्रसंघ महासभा में भारत के प्रतिनिधि रहे। सन 1958 में उन्होंने जिनेवा में हुए अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक सम्मलेन के 42वें अधिवेशन में भारतीय प्रतिनिधि मंडल का नेत्रित्व किया। सन 1978 में विएना शहर में आयोजित अंतर-संसदीय सम्मलेन में भी उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया। सन 1955 से लेकर सन 1979 तक वेंकटरमण संयुक्त राष्ट्र संघ प्रशासनिक न्यायाधिकरण का सदस्य और सन 1968 से 1979 तक अध्यक्ष रहे।
सन 1980 में वेंकटरमण एक बार फिर लोक सभा के लिए चुने गए और इंदिरा गाँधी मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री बनाये गए। बाद में उन्हें भारत का रक्षा मंत्री चुना गया। रक्षा मंत्री के तौर पर उन्होंने भारत के मिसाइल विकास कार्क्रम को आगे बढ़ाया। वे ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को अंतरिक्ष कार्यक्रम से मिसाइल कार्यक्रम में लेकर आये। इसके बाद उन्हें भारत का उप-राष्ट्रपति बनाया गया और फिर सन 1987 में वे भारत के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान उन्होंने चार प्रधानमंत्रियों के साथ कार्य किया।
सम्मान और पुरस्कार
आर. वेंकटरमण को कई पुरस्कार और सम्मान से नवाजा गया। मद्रास, बर्दवान और नागार्जुन विश्वविद्यालयों ने उन्हें ‘डॉक्टरेट ऑफ़ लॉ’ (आनरेरी) से सम्मानित किया। मद्रास मेडिकल कॉलेज ने उन्हें ‘आनरेरी फेल्लो’ और रूरकी विश्वविद्यालय ने उन्हें ‘डॉक्टर ऑफ़ सोशल साइंसेज’ से सम्मानित किया। भारत के स्वाधीनता आन्दोलन में भाग लेने के लिए उन्हें ‘ताम्र पत्र’ प्रदान किया गया और के. कामराज के समाजवादी देशों के दौरे पर उनके यात्रा वृत्तांत के लिए उन्हें सोवियत लैंड प्राइज से सम्मानित किया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ प्रशासनिक न्यायाधिकरण में उनकी सेवाओं के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ महासचिव ने उन्हें स्मृति-चिन्ह से सम्मानित किया। कांचीपुरम के शंकराचार्य ने उन्हें ‘सत सेवा रत्न’ से सम्मानित किया।
निधन
12 जनवरी 2009 को उन्हें सेना के नई दिल्ली स्थित अस्पताल में भर्ती कराया गया। उनकी हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती गयी और अंततः 27 जनवरी 2009 को उन्होंने ये संसार त्याग दिया।
टाइम लाइन (जीवन घटनाक्रम)
1910: तमिलनाडु में जन्म हुआ
1942: भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने के कारण गिरफ्तार हुए और दो साल जेल में बिताया
1947: मद्रास प्रोविंशियल बार फेडरेशन के सचिव चुने गए
1949: लेबर लॉ जर्नल की स्थापना की
1951: उच्चतम न्यायालय में वकालत प्रारंभ किया
1953: कांग्रेस संसदीय समिति के सचिव चुने गए
1955: संयुक्त राष्ट्र प्रशासकीय ट्राइब्यूनल का सदस्य मनोनित किये गए
1977: लोक सभा के लिए निर्वाचित
1980: लोक सभा के लिए पुनः निर्वाचित हुए
1983: भारत के रक्षा मंत्री बनाये गए
1984: भारत के उप-राष्ट्रपति चुने गए
1987: भारत के राष्ट्रपति चुने गए
2009: 98 वर्ष की उम्र में नयी दिल्ली में निधन हो गया