जन्म: 21 फ़रवरी 1894, शाहपुर, ब्रिटिश भारत (अब पाकिस्तान में)
मृत्यु: 1 जनवरी 1955, नई दिल्ली, भारत
शिक्षा: विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि, यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन, पंजाब विश्वविद्यालय
कार्यक्षेत्र: वैज्ञानिक, भारत में राष्ट्रिय प्रयोगशालाओं की स्थापना में अमूल्य योगदान दिया
पुरस्कार: पद्म भूषण’ (1954), OBE (1936), नाइटहुड (1941)
डॉ शांति स्वरुप भटनागर एक प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक थे, जिन्होंने भारत में राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं की स्थापना में प्रमुख भूमिका निभाई। इसलिए उन्हें “भारत में राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं’ का जनक भी कहा जाता है। वे 19 साल तक रशायन शाष्त्र के प्राध्यापक रहे। डॉ भटनागर वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसन्धान परिषद (सी.एस.आई.आर.) की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया और इसके पहले महा-निदेशक भी रहे। उन्हें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू.जी.सी.) का पहला अध्यक्ष भी बनाया गया था।
भारत में विज्ञानं और शोध के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसन्धान परिषद (सी.एस.आई.आर.) ने सन 1958 में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार की स्थापना की। यह पुरस्कार उन वैज्ञानिकों को दिया जाता है जिन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया हो।
प्रारंभिक जीवन
शांति स्वरुप भटनागर का जन्म 21 फ़रवरी 1894 में ब्रिटिश भारत के शाहपुर जिले (अब पाकिस्तान में) के भेरा में एक हिन्दू कायस्थ परिवार में हुआ था। जब वे मात्र 8 महीने के थे तभी उनके पिता परमेश्वरी सहाय भटनागर का निधन हो गया जिसके बाद उनका बचपन उनके नाना के घर गुजरा। उनके नाना एक इंजिनियर थे अतः बालक शांति का रुझान विज्ञान और प्रद्योगिकी की ओर स्वाभाविक ही हो गया। बचपन से ही उन्हें खिलौने, इलेक्ट्रानिक बैटरियां और तारयुक्त टेलीफोन बनाने का शौक रहा। उन्होंने अपने नाना के घर से काव्य और कविता का शौक भी मिला। उनकी प्रारंभिक शिक्षा सिकंदराबाद के दयानंद एंग्लो-वैदिक हाई स्कूल में हुई। सन 1911 में उन्होंने लाहौर के नव-स्थापित दयाल सिंह कॉलेज में दाखिला लिया। यहाँ पर वे ‘सरस्वती स्टेज सोसाइटी’ के सक्रीय सदस्य बन गए। भटनागर ने यहाँ एक कलाकार के तौर पर अच्छी ख्याति अर्जित कर ली थी। उन्होंने उर्दू में ‘करामाती’ नामक एक नाटक लिखा। इस नाटक के अंग्रेजी अनुवाद ने उन्हें ‘सरस्वती स्टेज सोसाइटी’ का साल 1912 का ‘सर्वश्रेष्ठ नाटक’ पुरस्कार और पदक दिलवाया।
शांति स्वरुप भटनागर ने सन 1913 में पंजाब यूनिवर्सिटी से इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। इसके पश्चात उन्होंने लाहौर के फॉरमैन क्रिस्चियन कॉलेज में दाखिला लिया जहाँ से उन्होंने सन 1916 में बी.एस.सी. और सन 1919 में एम.एस.सी. की परीक्षा उत्तीर्ण की।
उच्च शिक्षा और प्रारंभिक शोध
शांतिस्वरूप भटनागर को विदेश में पढने के लिए ‘दयाल सिंह ट्रस्ट’ से छात्रवृति मिली और वे अमेरिका के लिए (वाया इंग्लैंड) रवाना हो गए पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था और उन्हें अमेरिका जाने वाले जहाज़ पर सीट नहीं मिल सकी क्योंकि प्रथम विश्व युद्ध के चलते जहाज़ की सभी सीटों को अमेरिकी सेनाओं के लिए आरक्षित कर दिया गया था।
उनके लिए अच्छी बात ये हुई कि ट्रस्टी ने उन्हें यूनिवर्सिटी कॉलेज लन्दन में रशायन शाष्त्र के प्राध्यापक प्रोफेसर फ्रेडरिक जी. डोनन के अंतर्गत पढ़ने की अनुमति दे दी। सन 1921 में उन्होंने डॉक्टर ऑफ़ साइंस (डी.एस.सी.) की उपाधि भी अर्जित कर ली। उनके लन्दन प्रवास के दौरान वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसन्धान विभाग ने उन्हें £250 सालाना की फेल्लोशिप भी प्रदान की थी।
अगस्त 1921 में वे भारत वापस आ गए और नव-स्थापित बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में रशायन शाष्त्र के प्राध्यापक (प्रोफेसर) नियुक्त हो गए और तीन साल तक अध्यापन कार्य किया। उन्होंने विश्वविद्यालय के कुलगीत की भी रचना की।
बी.एच.यू. में लगभग तीन साल गुजारने के बाद डॉ भटनागर लाहौर चले गए जहाँ उन्हें पंजाब यूनिवर्सिटी में ‘फिजिकल केमिस्ट्री’ का प्रोफेसर व विश्वविद्यालय के राशायनिक प्रयोगशालाओं का निदेशक नियुक्त किया गया। यह उनके वैज्ञानिक जीवन की सबसे महत्वपूर्ण अवधि थी जिसके दौरान उन्होंने मौलिक वैज्ञानिक शोध किया। इस दौरान उन्होंने इमल्संस, कोल्लोइड्स और औद्योगिक रशायन शाष्त्र पर कार्य किया पर ‘मैग्नेटो-केमिस्ट्री’ के क्षेत्र में उनका योगदान सबसे अहम् रहा।
सन 1928 में उन्होंने के.एन.माथुर के साथ मिलकर ‘भटनागर-माथुर मैग्नेटिक इन्टरफेरेंस बैलेंस’ का आविष्कार किया। यह चुम्बकीय प्रकृति ज्ञात करने के लिए सबसे सम्वेदनशील यंत्रों में एक था। इसका प्रदर्शन सन 1931 में ‘रॉयल सोसाइटी के भोज’ में किया गया था। बाद में एक ब्रिटिश कम्पनी ने इसका उत्पादन भी किया गया।
स्वतंत्रता के उपरान्त, होमी जहाँगीर भाभा, प्रशांत चन्द्र महलानोबिस, विक्रम साराभाई और दूसरे अन्य वैज्ञानिकों के साथ-साथ डॉ भटनागर ने भी देश में विज्ञान एवं प्रद्योगिकी के आधारभूत ढांचे और नीतियों को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कई युवा और होनहार वैज्ञानिकों का मार्गदर्शन किया और प्रोत्साहित भी किया। इनमे शामिल थे श्यामदास चटर्जी, शांतिलाल बनर्जी और आशुतोष मुख़र्जी। वे ‘रमन इफ़ेक्ट’ पर सी.वी. रमन और के.एस. कृष्णन द्वारा किये जा रहे कार्यों पर भी गौर करते थे।
उन्होंने शिक्षा मंत्रालय में सचिव के पद पर कार्य किया और भारत सरकार के शिक्षा सलाहकार भी रहे। उन्होंने ‘वैज्ञानिक श्रमशक्ति समिति रिपोर्ट 1948’ के गठन और विचार-विमर्श में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उन्होंने व्यावहारिक रसायन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया और ‘नेशनल रिसर्च डेवलपमेंट कारपोरेशन’ (एन.आर.डी.सी.) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एन.आर.डी.सी. की भूमिका है शोध और विकास के बीच अंतर को समाप्त करना। उन्होंने देश में ‘औद्योगिक शोध आन्दोलन’ के प्रवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सन 1951 में उन्होंने तेल कंपनियों से ‘आयल रिफायनरीज’ स्थापित करने के लिए वार्ता हेतु एक-सदस्यीय आयोग का गठन किया जिसके परिणामस्वरूप सम्पूर्ण देश में कई ‘आयल रिफायनरीज’ की स्थापना हुई।
देश की आज़ादी के उपरांत सन 1947 में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की स्थापना, शांति स्वरुप भटनागर के नेतृत्व में की गयी और उन्हें सी.एस.आई.आर का प्रथम महा-निदेशक भी बनाया गया। डॉ भटनागर को ‘शोध प्रयोगशालाओं का जनक’ कहा जाता है। उन्होंने भारत में अनेकों बड़ी रासायनिक प्रयोगशालाओं के स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डॉ भटनागर ने भारत में कुल बारह राष्ट्रीय प्रयोगशालाएं स्थापित कीं, जिनमें प्रमुख इस प्रकार से हैं:
- केन्द्रीय खाद्य प्रोसैसिंग प्रौद्योगिकी संस्थान, मैसूर,
- राष्ट्रीय रासायनिकी प्रयोगशाला, पुणे,
- राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला, नई दिल्ली,
- राष्ट्रीय मैटलर्जी प्रयोगशाला, जमशेदपुर,
- केन्द्रीय ईंधन संस्थान, धनबाद
भारत में विज्ञान के विकास में इनके महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए इनकी मृत्यु के उपरांत, सी.एस.आई.आर ने ‘भटनागर पुरस्कार’ की शुरुआत की घोषणा की। यह पुरस्कार विज्ञान के हर क्षेत्र के कुशल वैज्ञानिकों को दिया जाता है।
भारत सरकार ने डॉ शांति स्वरूप भटनागर को विज्ञान एवं अभियांत्रिकी क्षेत्र में पद्म भूषण से सन 1954 में सम्मानित किया।
मृत्यु
1 जनवरी 1955 को दिल का दौरा पड़ने से डॉ शांति स्वरुप भटनागर की म्रत्यु हो गई।